किन्नर
खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण से किंनर यह संज्ञा क्यों नहीं मानते ? यह देवों का अवर्णवाद है । यह पवित्र वैक्रियिक शरीर के धारक होते हैं, वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीर वाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते। किंनर, किम्पुरुष, किन्नर हृदयंगम, रूपमाली किंनर, अनिदिन्त, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ ये दस प्रकार किन्नर जाति के देव होते हैं। पल्य प्रमाण आयु से युक्त देवों के आहार का काल 5 दिन और 90000 वर्ष आयु वाले देवों का आहारकाल 2 दिन मात्र जानना चाहिये । व्यंतर देवों में जो पल्य प्रमाण आयु से युक्त हैं, वे 5 मुहूर्तों में और जो 10000 वर्ष आयु से संयुक्त हैं वे 7 प्राणों में (उच्छवास निश्वास परिमित काल) में उच्छवास को प्राप्त करते हैं। क्षपक के मृत शरीर के अंग बाँधे या छेदे नहीं जायेंगे तो मृत शरीर में क्रीड़ा करने वाला कोई देवता उसमें प्रवेश करेगा। उस प्रेत को लेकर । उठेगा, भागेगा, क्रीड़ा करेगा। बहुत से पितर पुत्रों के शरीर में प्रविष्ट होकर जो गया आदि तीर्थ स्थानों में श्राद्ध करने के लिए कहते हैं, वे भी कोई ठगने वाले हैं। विभंग ज्ञान के धारक व्यंतर आदि नीच जाति के देव ही हुआ करते हैं।