कर्मभूमि
जहाँ असि ( अस्त्र धारण करना), मसि ( बही खाता लिखना), कृषि (खेती करना), शिल्प (हस्त कौशल के काम करना), वाणिज्य (व्यापार करना) और विद्या के द्वारा आजीविका होती है उसे कर्मभूमि कहते हैं अथवा जहाँ संयम का पालन करके मनुष्य तप करने में तत्पर होते हैं, जहाँ मनुष्यों को पुण्य से स्वर्ग की प्राप्ति और कर्म का नाश करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसे स्थान को कर्मभूमि कहते हैं। तीर्थंकर आदि सभी महापुरुष कर्मभूमि में ही उत्पन्न होते हैं देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर शेष विदेह क्षेत्र में शाश्वत कर्मभूमि रहती है। भरत और ऐरावत क्षेत्र में कालचक्र के परिवर्तन के अनुसार सुषमा–दुषमा, दुषमा और दुषमा- दुषमा कालों में कर्मभूमि रहती है। विजयार्ध पर्वत में शाश्वत कर्मभूमि रहती है। अढाई द्वीप में पाँच भरत सम्बन्धी, पाँच ऐरावत सम्बन्धी और पाँच विदेह सम्बन्धी पंद्रह कर्मभूमियाँ हैं। यदि पाँचों विदेहों के 32-32 क्षेत्रों की गणना की जाय तो पाँच भरत, पाँच ऐरावत और एक सौ साठ विदेह इस प्रकार कुल एक सौ सत्तर कर्मभूमियाँ ।