एकत्वानुप्रेक्षा
‘मैं अकेला ही उत्पन्न होता हूँ, अकेला ही मरता हूँ अकेला ही कर्मों का उपार्जन करता हूँ और अकेला ही उन्हें भोगता हूँ, कोई भी स्वजन और परिजन मेरे जन्म, जरा और मरण आदि के कष्ट को दूर नहीं कर सकते, धर्म ही एक मात्र ऐसा है जो मेरा सहायक है और मेरे साथ जाकर भवान्तर में भी सहायक हो सकता है – इस प्रकार बार-बार चिन्तन करना एकत्वानुप्रेक्षा है ।