उपेक्षा संयम
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देश और काल के विधान को समझने वाले, शरीर से विरक्त और तीन गुप्ति के धारक मुनिजनों के राग-द्वेष रूप चित्तवृत्ति का न होना उपेक्षा संयम है। परम उपेक्षा संयम, वीतराग चारित्र, सर्वपरित्याग, उत्सर्ग और शुद्धोपयोग ये सब शब्द एकार्थवाची हैं।
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