उपशान्त कषाय
समस्त मोह का उपशम करने वाला जीव उपशान्त कषाय कहलाता है। शरद् काल में सरोवर का जल जिस प्रकार निर्मल होता है उसी प्रकार सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है जिसका ऐसा उपशान्त कषाय गुणस्थानवर्ती जीव अत्यन्त निर्मल परिणाम वाला होता है इस गुणस्थान का पूरा नाम उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ है जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं। ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म से युक्त जीव को छद्मस्थ कहते हैं अतः जो उपशान्त कषाय होते हुए भी वीतराग छद्मस्थ हैं, उन्हें उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ कहते हैं । इस गुणस्थान में सम्पूर्ण कषाय उपशान्त हो जाती है अतः चारित्र मोह की अपेक्षा इसमें औपशमिक भाव है तथा सम्यग्दर्शन की अपेक्षा औपशमिक या क्षायिक दोनों भाव संभव हैं ।