आर्यखण्ड
गंगा–सिंधु नदी और विजयार्द्ध पर्वत से विभाजित होने के कारण भरत क्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। उत्तर और दक्षिण भरत क्षेत्र में प्रत्येक में तीन-तीन खण्ड हैं। इनमें से दक्षिण भरत के तीन खण्डों में मध्य का आर्यखण्ड है। अढ़ाई द्वीप में पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पाँच विदेह क्षेत्र सम्बन्धी एक सौ सत्तर आर्यखण्ड हैं। भरत व ऐरावत क्षेत्र के भीतर पाँच-पाँच आर्यखण्डों में मनुष्यों की अपेक्षा जघन्य रूप से मिथ्यात्व गुणस्थान और उत्कृष्ट रूप से चौदह गुणस्थान तक मनुष्य पाए जाते हैं। पाँच विदेह क्षेत्रों के भीतर एक सौ साठ आर्यखण्डों में जघन्य रूप से छह गुणस्थान और उत्कृष्ट रूप से चौदह गुणस्थान तक पाए जाते हैं। विद्याधर श्रेणियों में सदा तीन गुणस्थान (मिथ्यात्व असंयत और देशसंयत) तथा उत्कृष्ट रूप से पाँच गुणस्थान होते हैं। विद्याओं को छोड़ देने पर वहाँ चौदह भी गुणस्थान होते हैं। तिर्यंचों की अपेक्षा भरत और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी आर्यखण्डों में जघन्य रूप से एक मिथ्यात्व गुणस्थान और उत्कृष्ट रूप से कदाचित पाँच गुणस्थान भी देखे जाते हैं। पाँच विदेहों सम्बन्धी आर्यखण्डों में विद्याधर श्रेणियों में और स्वयंप्रभ पर्वत के बाह्य भाग में सासादन व मिश्र के सिवाय तीन गुणस्थान जघन्य रूप से अल्पकाल के लिए होते हैं उत्कृष्ट रूप से पाँच गुणस्थान भी कदाचित् देखे जाते हैं।