आग्नेयी धारणा
पार्थिवी-धारणा के उपरांत योगी निश्चल अभ्यास से अपने नाभि-मंडल में सोलह पत्तों से युक्त कमल का ध्यान करे फिर उसे कमल की कर्णिका में महामंत्र र्ह का तथा सोलह पत्तों पर अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ल ए ऐ ओ औ अं अः इन सोलह अक्षरों का ध्यान करे, फिर महामंत्र है की रेफ से मंद-मंद निकलती धुंए की शिखा का विचार करे, फिर निकलती हुई चिनगारियों और अग्नि की लपटों का चिन्तवन करे। फिर योगी मुनि अपने हृदय में स्थित आठ पत्तों के कमल पर लिखे आठ कर्मों की उस अग्नि की ज्वाला में निरंतर जलता हुआ चिंतन करे। उस कमल के जलने के उपरांत शरीर के बाह्य में चारों ओर त्रिकोण अग्नि का चिन्तवन करे। यह बाहर का अग्निमंडल अंतरंग की मंत्राग्नि को जलाता है और उस नाभिकमल और शरीर को नष्ट करके धीरे-धीरे शांत हो जाता है। ऐसा चिन्तवन करना आग्नेयी धारणा है।