सम्यक्त्व / सम्यग दर्शन का कारण
( षट्खंडागम/6/1/1,9-9/ सूत्र नं./419-436); ( तिलोयपण्णत्ति/ अधि./गा.नं.); ( सर्वार्थसिद्धि/1/7/26/2 ); ( राजवार्तिक/2/3/2/105/3 ) –
षट्खंडागम/ सूत्र नं. | तिलोयपण्णत्ति | मार्गणा | जिनबिंब दर्शन | धर्मश्रवण | जातिस्मरण | वेदना |
नरक गति | ||||||
6-9 | 2/359-360 | 1-3 पृथिवी | ❌ | ✅ | ✅ | ✅ |
10-12 | 2/361 | 4-7 पृथिवी | ❌ | ❌ | ✅ | ✅ |
तिर्यंच गति | ||||||
21-22 | 5/308-9 | पंचे.संज्ञी गर्भज | ✅ | ✅ | ✅ | ❌ |
मनुष्यगति | ||||||
29-30 | 4/2955-56 | मनु.गर्भज | ✅ | ✅ | ✅ | ❌ |
देवगति | ||||||
जिनमहिमा दर्शन | धर्मश्रवण | जातिस्मरण | देवर्द्धि दर्शन | |||
37-38 | 3/239-240 | भवनवासी | ✅ | ✅ | ✅ | ✅ |
37 | 6/101 | व्यंतर | ✅ | ✅ | ✅ | ✅ |
37 | 7/317 | ज्योतिषी | ✅ | ✅ | ✅ | ✅ |
37 | 8/677-78 | सौधर्म-सहस्रार | ✅ | ✅ | ✅ | ✅ |
39-40 | आनत आदि चार | ✅ | ✅ | ✅ | ❌ | |
42 | 8/679 | नवग्रैवेयक | ❌ | ✅ | ✅ | ✅ |
43 | 8/679 | अनुदिश व अनुत्तर | ❌ | ❌ | ❌ | ❌ |
(पहिले से ही सम्यग्दृष्टि होते हैं) |