अर्हंत भगवान् के उपदेश देने की सभा का नाम समवसरण है, जहाँ बैठकर तिर्यंच मनुष्य व देव‒पुरुष व स्त्रियाँ सब उनकी अमृतवाणी से कर्ण तृप्त करते हैं। इसकी रचना विशेष प्रकार से देव लोग करते हैं। इसकी प्रथम सात भूमियों …
स्वभाव, पुरुषार्थ, भवितव्यता (होनहार), काललब्धि (नियति) और निमित्त (दैव ) 1. समवाय संबंध का लक्षण पंचास्तिकाय/50समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो य। तम्हा दव्वगुणाणं अजुदा सिद्धि त्ति णिद्दिट्ठा।=समवर्तीपन वह समवाय है। वही अपृथक्पना और अयुतसिद्धपना है इसलिए द्रव्य और गुणों की …
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