Present
जो मुनि राग और द्वेष को उत्पन्न करने वाले आसन शय्या वगैरह का परित्याग करता है, अपने आत्मस्वरूप में रमता है और इंद्रियों के विषयों से विरक्त रहता है, उसके विविक्त शय्यासन नाम का पाँचवाँ उत्कृष्ट तप होता है विविक्त …
जो मुनि राग और द्वेष को उत्पन्न करने वाले आसन शय्या वगैरह का परित्याग करता है, अपने आत्मस्वरूप में रमता है और इंद्रियों के विषयों से विरक्त रहता है, उसके विविक्त शय्यासन नाम का पाँचवाँ उत्कृष्ट तप होता है विविक्त …
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