अपने शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान या आचरण अध्यात्म है।
स्व-पर के एकत्व का अध्यास होने पर विशुद्ध चैतन्य परिणाम से भिन्न लक्षण वाले अध्यात्म स्थान भी जीव के लक्षण नहीं है।
जीवों की कषायों की विचित्रता सामान्य बुद्धि का विषय नहीं है। आगम में वे कषाय अनंतानुबंधी आदि चार प्रकार की बतायी गयी हैं। इन चारों के निमित्त-भूत कर्म भी इन्हीं नाम वाले हैं। यह वासना रूप होती हैं व्यक्त रूप …
जीवों की परिणाम विशुद्धि में तरतमता का नाम गुणस्थान है। बहते-बहते जब साधक निर्विकल्प समाधि में प्रवेश करने के अभिमुख होता है तो उसकी संज्ञा अनिवृत्तिकरण गुणस्थान है। इस अवस्था को प्राप्त सभी जीवों के परिणाम तरतमता रहित सदृश होते …