अनंत धर्मात्मक होने के कारण वस्तु बड़ी जटिल है (देखें अनेकांत-2.4)। उसको जाना जा सकता है, पर कहा नहीं जा सकता। उसे कहने के लिए वस्तु का विश्लेषण करके एक-एक धर्म द्वारा क्रम पूर्वक उसका निरूपण करने के अतिरिक्त अन्य …
पंचाध्यायी/पूर्वार्ध/श्लोक‒अस्ति द्रव्यं गुणोऽथवा पर्यायस्तत्त्रयं मिथोऽनेकम् । व्यवहारैकविशिष्टो नय: स वानेकसंज्ञको न्यायात् ।७५२। एकं सदिति द्रव्यं गुणोऽथवा पर्ययोऽथवा नाम्ना। इतरद्वयमन्यतरं लब्धमनुक्तं स एकनयपक्ष:।७५३। परिणममानेऽपि तथाभूतैर्भावैर्विनश्यमानेऽपि। नायमपूर्वों भाव: पर्यायार्थिकविशिष्टभावनय:।७६५। अभिनवभावपरिणतेर्योऽयं वस्तुन्यपूर्वसमयो य:। इति यो वदति स कश्चित्पर्यायार्थिकनयेष्वभावनय:।७६४। अस्तित्वं नामगुण: स्यादिति साधारण: स …