सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.115 पूर्व पृष्ठ अगला पृष्ठ
न्योन दशमि दश दशमि कराय, नये नये दश पात्र जिमाय। (यह व्रत श्वेतांबर व स्थानकवासी आम्नाय में प्रचलित है।) (व्रत विधान संग्रह/पृ.131)। पूर्व पृष्ठ अगला पृष्ठ
भाव-पाहुड + मंगलाचरण कर ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा – णमिऊण जिणवरिं दे णरसुरभवणिंदवंदिए सिद्धे वोच्छामि भावपाहुडमवसेसे संजदे सिरसा ॥1॥ नमस्कृत्य जिनवरेन्द्रान् नरसुरभवनेन्द्रवंदितान् सिद्धान् । वक्ष्यामि भावप्राभृतमवशेषान् संयतान् सिरसा ॥१॥ सुर-असुर-इन्द्र-नरेन्द्र वंदित सिद्ध जिनवरदेव अर । सब संयतों को नमन कर …
आचार्य.कुंदकुंद (ई.127-179) कृत महान् आध्यात्मिक कृति। इसमें 415 प्राकृत गाथाएँ निबद्ध हैं। इस पर निम्न टीकाएँ उपलब्ध हैं‒1. आचार्य अमृतचंद्र (ई.905-955) कृत आत्मख्याति। 2. आचार्य जयसेन (ई.श.12-13) कृत तात्पर्यवृत्ति। 3. आचार्य प्रभाचंद नं.5 (ई.950-1020) कृत। 4. पं.जयचंद छाबड़ा (ई.1807) कृत …