जो अधिक स्थिति बांधकर बाद में संक्लेश परिणामों के कारण नीचे के स्वर्गों में उत्पन्न होते हैं, उन्हें घातायुष्क कहते हैं। ऐसे देवों की उत्पत्ति शतार, सहस्रार स्वर्ग तक होती है आगे के स्वर्गों में इनकी उत्पत्ति नहीं है। जैसे- …
जो जीव के ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य इन अनुजीवी गुणों का घात करते हैं अर्थात् प्रकट नहीं होने देते, उन्हें घाति कर्म कहते हैं। घाति कर्म के चार भेद हैं- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय। ये कर्म क्रम से …