यहाँ अनन्त भाग वृद्धि की उर्वक अर्थात् ‘उ’ स्वीकार की गयी है ।
जिस कर्म के उदय से शरीरगत पुद्गल स्कन्धों में उष्णता होती है, उसे उष्ण-नामकर्म कहते हैं।
ग्रीष्मकालीन सूर्य की किरणों से सूखकर पत्तों के गिर जाने से छायारहित वृक्षों से युक्त स्थान में जो उपवास आदि विविध तप करने में लीन हैं तथा दावाग्नि जनित उष्णता अति गर्म वायु और आतप के कारण शरीर में दाह …