स्वसंवेदन
‘स्वसंवेदन’ आत्मा के उस साक्षात् दर्शन रूप अनुभव का नाम है जिसमें योगी आत्मा स्वयं ही ज्ञेय व ज्ञायक भाव को प्राप्त होता है अथवा निजात्मा के लक्ष्य से सकल विकल्पों को दग्ध करने पर जो सौरव्य होता है उसे संवित्ति या स्वसंवेदन कहते हैं। यह संवित्तिया स्वसंवेदन रागादि विकल्पों की उपाधि से रहित परम स्वास्थ्य लक्षण वाला है स्वसंवेदनगम्य आत्म-सुख का वेदन ही स्वानुभव है।