स्त्री संगति
सम्पूर्ण स्त्री भाव में मुनियों को विश्वास रहित होना चाहिए । प्रमाद रहित होना चाहिए तभी आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन कर सकेगा। स्त्री के साथ सहगमन करना, एकासन पर बैठना इन कार्यों से पुरुष का मन अग्नि के समीप लाख की भाँति पिघल जाता है जो पुरुष स्त्री का संसर्ग विष के समान समझ कर उसका नित्य त्याग करता है वही महात्मा यावज्जीवन ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहता है।