समता
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जीवन व मरण में, संयोग व वियोग में, अप्रिय व प्रिय में, शत्रु व मित्र में, सुख व दुख में, मान व अपमान में, सुवर्ण व धूल में समभाव रखना समता है। मोह और क्षोभ से रहित भाव को साम्य या समता कहते हैं। साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चित्त निरोध, शुद्धोपयोग ये सब एकार्थवाची शब्द हैं।
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