संक्लेश
असाता के बन्ध योग परिणाम को संक्लेश कहते हैं। अथवा क्रोध, मान, माया, लोभरूप परिणाम विशेष को संक्लेश कहते हैं । असाता, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दु:स्वर और अनादेय आदि परिवर्तन नाम अशुभ प्रकृतियों के बन्ध के कारणभूत कषायों के उदयस्थानों को संक्लेश स्थान कहते हैं अथवा कषायों के विपाक की अतिशयता जिनका लक्षण है वे संक्लेश स्थान हैं। मात्र कषाय की वृद्धि का नाम संक्लेश नहीं है और कषायों की वृद्धि केवल असाता के बन्ध का कारण नहीं है क्योंकि कषायों की वृद्धि के काल में साता का बंध भी होता है साता बन्धक जीव तीन प्रकार के हैं चतुःस्थान बंधक त्रिस्थान बंधक और द्विस्थान बन्ध । असाता के बन्धक जीव तीन प्रकार के हैं द्विस्थान बन्धक, त्रिस्थान बन्धक और चतुःस्थान बन्धक साता वेदनीय चतुःस्थान बन्धक जीव जीव सबसे विशुद्ध है। त्रिस्थान बन्ध संक्तिष्टतर है, द्विस्थान बन्धक जीव संक्लिष्ट है। असाता वेदनीय के द्विस्थान बन्धक जीव सर्वविशुद्ध है त्रिस्थान बन्धक जीव संक्लिष्टतर है चतुः स्थान बन्धक जीव संक्लिष्ट है।