श्रेयांस राजा
पूर्व के दसवें भव से धातकीखण्ड में एक गृहस्थ की पुत्री थी । पूर्व पुण्य से नोंवे भव में मणिसुता निर्वामिका हुई। वहाँ से व्रतों के प्रभाव से आठवें भव में श्रीप्रभ विमान में देवी हुई अर्थात् ऋषभदेव के पूर्व के आठवें भव में ललितांग देव की देवी, सातवें भव में श्रीमति, छठे में भोगभूमि में, पाँचवे में श्री स्वयंप्रभदेव, चौथे में केशव नाम का राजकुमार, तीसरे में अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र, दूसरे में धनदेव, पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में अहमिन्द्र हुआ। इनके पूर्व भव ऋषभदेव सम्बन्धित हैं। वर्तमान भव में राजकुमार थे भगवान ऋषभदेव को प्रथम आहार देकर दानवृत्ति कर्त्ता हुये। अन्त में भगवान के समोशरण में दीक्षा ग्रहण कर गणधर पद प्राप्त किया तथा मोक्ष प्राप्त किया।