श्रुतकेवली
द्वादशांग रूप समस्त श्रुतज्ञान को धारण करने वाले महर्षियों को श्रुत केवली कहते हैं अथवा जो जीव निश्चय से श्रुतज्ञान के द्वारा अनुभवगोचर केवल एक शुद्ध आत्मा को सम्मुख होकर जानता है उसे श्रुतकेवली कहते हैं। निश्चय और व्यवहार नय की अपेक्षा श्रुतकेवली का कथन करते हुए आचार्यों ने लिखा है कि जो श्रुतज्ञान के द्वारा केवल शुद्धात्म को जानते हैं वे श्रुतकेवली है यह निश्चय नय की दृष्टि है और जो सर्व श्रुतज्ञान को जानते हैं वे श्रुतकेवली है यह व्यवहार नय की दृष्टि है। वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञान से शुद्धात्मतत्व के जानने पर समस्त द्वादशांग शास्त्र जाना जाता है क्योंकि जैसे रामचन्द्र पाण्डव, भरत, सागर आदि महान पुरुष भी जिनराज की दीक्षा लेकर द्वादशांग को पढ़कर द्वादशांग पढ़ने का फल निश्चय रत्नत्रय स्वरूप शुद्ध आत्मा के ध्यान में लीन हुए थे इसलिए वीतराग स्वसंवेदन ज्ञान से जिन्होंने अपनी आत्मा को जाना उन्होंने सबको जाना।इससे यह बात निश्चित हुई कि आत्मा के जानने पर सब जाना जाता है यह निश्चय नय दृष्टि से कथन करने की पद्धति है।