शुद्धोपयोग
निश्चय रत्नत्रयात्मक तथा निर्मोह शुद्धात्मा का संवेदन ही जिसका लक्षण है तथा जिसे आगम भाषा में शुक्ल ध्यान कहते हैं। वह शुद्धोपयोग में है अथवा जीवन मरण आदि में समता भाव रखना जिसका लक्षण है ऐसा परम उपेक्षासंयम ही शुद्धोपयोग है अथवा शुद्धात्मा से अतिरिक्त अन्य बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह त्याज्य है ऐसा सर्वपरित्यागरूप उत्सर्ग मार्ग या वीतराग चारित्र ही शुद्धोपयोग है। शुद्धोपयोग में शुद्ध – बुद्ध एक स्वभाव का धारक जो स्व-आत्मा है वही ध्येय होता है। इस कारण शुद्ध ध्येय होने से शुद्ध अवलम्बनपने से तथा शुद्धात्मस्वरूप का साधक होने से शुद्धोपयोग शब्द सार्थक है। जिन्होंने पदार्थों और सूत्रों को भलीभाँति जान लिया है जो संयम और तपयुक्त है जो वीतराग है और जिन्हें सुख-दुख समान है ऐसे श्रमण को शुद्धोपयोगी कहा गया है। शुद्धोपयोग को साक्षात मोक्ष का कारण माना गया है क्योंकि कर्म का बन्ध शुभ व अशुभ परिणामों से होता है शुद्ध परिणामों से संसार का निर्मूल क्षय होता है।