शुद्ध निश्चय नय
परमभावग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय ही परम शुद्ध निश्चय नय है। शुद्ध निश्चय से जीव को चार गति के भवों में परिभ्रमण, जाति, जरा, मरण, रोग, शोक, कुल, योनि, जीव स्थान, मार्गणा स्थान नहीं है। निश्चय नय से जीव सागार और अनगार दोनों धर्मों से भिन्न है। शुद्ध नय से जीव स्वभाव द्रव्य व कर्मों से रहित कहा गया है। शुद्ध निश्चय नय से भगवान त्रिकाल निरुपाधि, निरवधि, नित्य शुद्ध ऐसे सहज ज्ञान और सहज दर्शन द्वारा निज कारण परमात्मा को स्वयं कार्य परमात्मा होने पर भी जानते हैं और देखते हैं। शुद्ध निश्चय नय से तो जैसे स्त्री और पुरुष के संयोग के बिना पुत्र की तथा चूना और हल्दी के संयोग के बिना लाल रंग की उत्पत्ति नहीं होती उसी प्रकार रागद्वेष की उत्पत्ति नहीं होती। निरुपाधिक गुण व गुणी में अभेद दर्शनादि वाला शुद्ध निश्चय नय है। जैसे केवलज्ञानादि ही जीव है अर्थात् जीव का स्वभावभूत लक्षण है।