व्यवहारलम्बी साधु
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जो सातों तत्त्वों का भेद रूप से श्रद्धान करता है तथा वैसे ही भेद रूप से उसे जानता है तथा वैसे ही भेद रूप से उसे उपेक्षित करता है अर्थात् विकल्पात्मक भेद रत्नत्रय की साधना करता है, मुनि व्यवहारावलम्बी है।
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