वैससिक बन्ध
पुरुष प्रयोग से निरपेक्ष वैस्रसिक बन्ध है । सामान्य देश व प्रदेश में परस्पर बन्ध स्निग्ध रुक्ष गुण के कारण पुद्गल परमाणु है । बन्ध सादी वैससिक है, वे पुद्गल बन्धन को प्राप्त होकर विभिन्न प्रकार के अभ्र रूप से मेघ संज्ञा, बिजली, उल्का, कनक, दिशादाह, धूमकेतु, इन्द्रधनुष रूप से तथा क्षेत्रकाल ऋतु है और पुद्गल के अनुसार जो बन्धन परिणाम रूप से परिणत होते हैं तथा इनको लेकर अन्य जो अनर्गल प्रवृत्ति बन्धन परिणाम रूप परिणित होते हैं, वह सब सादी विस्रसाबन्ध है।