वैयाधिक करण्य
एक वस्तु में एक साथ दो विरोधी धर्मों के स्वीकार करने से नैयायिक लोग अनेकान्त वादियों पर वैयधिक करण्य दोष उठाते हैं। अस्तित्व का अधिकरण अन्य होता है और नास्तित्व का अन्य होता है इस रीति से अस्तित्व और नास्तित्व का वैयाधिकरण है वैयाधिकरण भिन्न में अधिकरण में वृत्ति स्वरूप है अर्थात् इस अनेकान्तवाद में अस्तित्व, नास्तित्व दोनों ही अधिकरण में है। इसलिए नैयायिक लोग इस पर वैयाधिककरण्य नाम का दोष लगाते हैं ।