वृत्तिपरिसंख्यान
भोजन, भाजन, घर-बार ( मुहल्ला ) और दाता इनकी वृत्ति संज्ञा है। उस वृत्ति का परिसंख्यान है अर्थात् ग्रहण करना वृत्ति परिसंख्यान है। वृत्ति परिसंख्यान में प्रतिबद्ध जो अवग्रह अर्थात् परिमाण नियंत्रण होता है, वह वृत्ति परिसंख्यान नाम का तप है। इसमें मुनि आहार के लिए जाने से पहिले अपने मन में ऐसा संकल्प कर लेता है कि आज एक घर या दो घर तक जाऊँगा अथवा नीरस आहर मिलेगा तो ही आहार ग्रहण करूँगा अथवा एक निश्चित प्रकार का अन्न – पान ही ग्रहण करूँगा इत्यादि । अनेक प्रकार से वृत्तिपरिसंख्यान तप आशा की निवृत्ति के लिए किया जाता है अथवा इन्द्रिय संयम या भाजन व भोजनादि के प्रति रागादि दूर करने के लिए किया जाता है।