वीर्यान्तराय
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द्रव्य की अपनी शक्ति विशेष का नाम वीर्य है। जिस कर्म के उदय से जीव किसी कार्य के प्रति उत्साहित होने की इच्छा होते हुए भी उत्साहित नहीं हो पाता या असमर्थता का अनुभव करता है, उसे वीर्यान्तराय-कर्म कहते हैं ।
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