विभाव गुण पर्याय
मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ये चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान जो कहे गये हैं, ये सब जीव द्रव्य की विभाव गुण पर्याय हैं। अणुकादिस्कन्धों में जो रूपादिक कहे गये हैं, अथवा देखे गये हैं, वे सब पुद्गल द्रव्य की गुणपर्याय हैं। जीव द्रव्य की विभाव अर्थ पर्याय, कषाय तथा विशुद्धि संक्लेश रूप शुभ व अशुभ लेश्या स्थानों में षट्स्थान गत हानि–वृद्धि रूप जाननी चाहिए। द्विअणुक आदि स्कन्धों में ही रहने वाली तथा चिरकाल स्थायी रूप, रसादि रूप पुद्गल द्रव्य की विभाव अर्थ पर्याय जाननी चाहिए। यहाँ पर कोई-कोई विद्वान अर्थ कहो या गुण कहो इन दोनों का एक ही अर्थ होने से अर्थ पर्याय को ही गुणपर्यायों का दूसरा नाम कहते हैं।