विपर्यास
आत्मा में स्थित कोई मिथ्या दर्शन रूप परिणाम रूप रसादिक की उपलब्धि होने पर भी कारण विपर्यास, भेदाभेद विपर्यास, और स्वरूप विपर्यास को उत्पन्न करता रहता है। विपर्यास का अर्थ विपरीपता है। कोई मानता है कि रूपादि का एक कारण है जो अमूर्त व नित्य है, कोई मानता है कि पृथिवी आदि के परमाणु भिन्न-भिन्न जाति के हैं। ये परमाणु अपने-अपने समान जातीय कार्य को ही उत्पन्न करते हैं यह सब कारण विपर्यास हैं। कारण से कार्य को सर्वथा भिन्न मानना अथवा सर्वथा अभिन्न मानना भेदाभेद विपर्यास है। रूपादि निर्विकल्प है या रूपादि है ही नहीं या रूपादि के आकार रूप से परिणत हुआ विज्ञान ही है। उसका आलम्बनभूत और कोई बाह्य पदार्थ नहीं है यह स्वरूप विपर्यास है।