विधिसाधकहेतु
उपलब्धि रूप हेतु – विधि रूप। 1. शब्द परिणामी हैं, क्योंकि वह किया हुआ है। जो पदार्थ किया हुआ होता है । वह वह परिणामी होता है- जैसे घट । शब्द किया हुआ है, इसलिए परिणामी है। जो परिणामी नहीं होता, वह किया हुआ भी नहीं होता। जैसे- बाँझ का पुत्र हो गया । यह शब्द किया है इसलिए वह परिणामी है। 2. इस प्राणी में बुद्धि है क्योंकि वह चलता आदि है। 3. यहाँ छाया है, क्योंकि छाया का कारण छत्र मौजूद है। 4. मुहूर्त के पश्चात रोहिणी का उदय होगा क्योंकि इस समय कृतिका का उदय है। 5. भरणी का उदय हो चुका क्योंकि इस पर्याय कृतिका का उदय है। 6. इस मातुर्लिंग में रूप है क्योंकि इसमें रस पाया जाता है। अनुपलब्धि हेतु – विधिरूप। 1. इस भूतल पर घड़ा नहीं है, क्योंकि उसका स्वरूप नहीं दिखता। 2. यहाँ शिंशवा नहीं है क्योंकि किसी प्रकार का यहाँ वृक्ष नहीं दिखता। 3. यहाँ पर जिसकी सामर्थ्य किसी द्वारा रुकी नहीं है, ऐसी अग्नि नहीं है, क्योंकि यहाँ उसके अनुकूल हुआ अब कार्य नहीं दिखाता । 4. यहाँ हुआ नहीं पाया जाता क्योंकि उसके अनुकूल अग्निरूप कारण यहाँ नहीं है। 5. एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय न होगा, क्योंकि इस समय कृतिका का उदय नहीं हुआ। 6. एक मुहूर्त के पहले भरणी का उदय नहीं हुआ क्योंकि इस समय कृतिका का उदय नहीं पाया जाता । 7. इस बराबर पलड़े वाली तराजू में (एक पलड़े) ऊँचापन नहीं है, क्योंकि दूसरे पलड़े पर नीचापन नहीं पाया जाता ।