विग्रहगति
विग्रह का अर्थ देह है। अथवा विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है अथवा जिस अवस्था में कर्म का ग्रहण होने पर भी नोकर्म रूप पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता वह विग्रह है । विग्रह अर्थात् शरीर के लिए जो गति होती है वह विग्रहगति है। विग्रहगति का अर्थ है पूर्वभव के शरीर को छोड़कर आगामी भव ग्रहण करने के लिए गमन करना । यह चार प्रकार की है इषुगति, पाणिमुक्ता, लांगलिका और गोमूत्रिका । इषुगति विग्रह अर्थात व्याघात या मोड़ा रहित है और शेष तीन मोड़े सहित होती हैं । सरल अर्थात् धनुष से छूटे हुए बाण की तरह मोड़ा रहित गति को इषुगति या ऋजुगति कहते हैं इस गति में मात्र एक समय लगता है जिसे हाथ से तिरछे फेंके गये पदार्थ की एक मोड़े वाली गति होती है उसी प्रकार संसारी जीवों के एक मोड़ेवाली गति को पाणिमुक्ता गति कहते हैं। यह गति दो समय वाली होती है। जैसे हल में दो मोड़े होते हैं उसी प्रकार दो मोड़े वाली गति को लांगलिका गति कहते हैं यह गति तीन समय वाली होती है जैसे गाय का चलते समय मूत्र का करना अनेकों मोड़ों वाला होता है उसी प्रकार तीन मोड़े वाली गति को गोमूत्रिका गति कहते हैं यह गति चार समय वाली होती है। विग्रह गति में कार्मण काय योग होता है। यह गति श्रेणी के अनुसार होते है विग्रह या मोड़े वाली गति चार समयों से पहले होती है अर्थात् अधिक से अधिक तीन समय होती है। इस दशा में जीव एक, दो या तीन समय तक अनाहारक रहता है एक समयवाली गति मोड़े रहित होती है जिसमें आनुपूर्वी का उदय नहीं होता। मुक्त जीव की गति विग्रह रहित होती है और संसारी जीवों की गति विग्रह रहित व विग्रह सहित दोनों प्रकार की होती है।