वशार्त मरण
सम्यक्त्व पंडित, ज्ञानपंडित, चारित्रपंडित, ऐसे लोग इस मरण से मरते हैं। अन्य के सिवाय अन्य भी इस मरण से मरते हैं। आर्त रौद्र भावोंयुक्त मरना वशार्त मरण है। यह चार प्रकार का है – इन्द्रिय -वशार्त, वेदना – वशार्त, कषाय -वशार्त और नोकषाय–वशार्त। पाँच इन्द्रियों के पाँच विषयों की अपेक्षा इन्द्रियवशार्त पाँच प्रकार का है। मनोहर विषयों में आसक्त होकर और अमनोहर विषयों में द्वेष करके जो मरण होता है वह श्रोत्रादि इन्द्रियों और मन सम्बन्धी इन्द्रिय वशार्त मरण है। शारीरिक और मानसिक सुखों और दुखों में अनुरक्त होकर मरने को वेदनावशार्त कहते हैं यह साता, असाता के भेद से दो प्रकार का है। कषायों के क्रोधादि भेदों की अपेक्षा कषायवशार्त चार प्रकार का है। स्वतः में या दूसरे में या दोनों में उत्पन्न हुए क्रोध के वश मरना कषायवशार्त है। इसी प्रकार आठ मदों के वश मरना मानवशार्त है । पाँच प्रकार की माया से मरना मायावशार्त है और पर पदार्थों में ममत्व के वश मरना लोभवशार्त है। हास्य, रति, अरति आदि से जिसकी बुद्धि मूढ़ हो गई है ऐसे व्यक्ति का मरण नोकषायवशार्त मरण है। इस मरण को बाल मरण के अन्तर्गत रख सकते हैं। दर्शनपंडित अविरतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीव भी वशार्त मरण को प्राप्त हो सकते हैं। उनका यह मरण बाल पंडित मरण अथवा दर्शनपंडित मरण समझना चाहिए।