वर्षायोग
वर्षा ऋतु में वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ रहना वृक्षमूल योग या वर्षायोग कहलाता है अथवा वर्षाकाल में चार मास एक ही स्थान में रहना अर्थात् भ्रमण का त्याग करना यह पाद्य नाम का स्थिति कल्प है। वर्षाकाल में जमीन स्थावर व त्रस जीवों से व्याप्त होती है ऐसे समय में हिंसा आदि दोषों से बचाने के लिए एक सौ बीस दिवस एक स्थान में रहते हैं कारणवश इससे अधिक या कम दिवस भी एक स्थान पर ठहर सकते हैं। आषाढ़ शुक्ला दसवीं से प्रारम्भ कर कार्तिक पूर्णमासी तक आगे भी और तीस दिन तक एक स्थान में ठहर सकते हैं। अध्ययन, वृष्टि, शक्ति का अभाव, वैयावृत्ति करना आदि प्रयोजन हो तो अधिक दिन तक रह सकते हैं। मारी रोग, दुर्भिक्ष में ग्राम के लोगों का अथवा देश के लोगों का अपना स्थान छोड़कर अन्य ग्राम आदिक में जाना, गच्छ का नाश करने के निमित्त उपस्थित होना आदि कारण उपस्थित होने पर मुनि चातुर्मास में भी अन्य स्थानों पर जा सकते हैं।