राजू
एक देव दो लाख सत्तावन हजार एक सौ बावन योजन प्रतिक्षण की गति से गमन करे तो 6 माह में जितनी दूरी तय करे वह एक राजू होगी। अथवा एक हजार भार का गोला इन्द्रलोक से नीचे गिरकर 6 माह में जितनी दूर पहुँचे उस सम्पूर्ण लम्बाई को एक राजू कहते हैं मध्यलोक का विस्तार एक राजू है जिसमें असंख्य द्वीप समुद्र समाहित रहते हैं। ग्रहण करना सो रात्रि भोजन कहलाता है। रात्रि भोजन का त्याग करना जैन श्रावक का परम्परागत आचरण है अत्यन्त आसक्ति और हिंसा से बचने के लिए रात्रि भोजन का त्याग करना अनिवार्य माना गया है रात्रि भोजन का त्याग करने से श्रावक भोजन सम्बन्धी आरम्भ आदि से बच जाता है। भोजन ग्रहण करने का काल सूर्योदय और सूर्यास्त की तीन घड़ी अर्थात् बहत्तर मिनिट छोड़कर इसके मध्य का समय है अतः रात्रि भोजन त्याग करने वाले को सूर्योदय के पश्चात् 72 मि. तक भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए तथा सूर्यास्त से 72 मि. पहले तक भोजन कर लेना चाहिए। इसी प्रकार जिस समय पानी बरस रहा हो और काली घटा छाने से अंधेरा हो गया हो उस समय भी भोजन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति रात्रि भोजन का त्याग करता है वह एक वर्ष में छह माह के उपवास के बराबर फल पाता है सामान्यतः श्रावक के लिए रात्रिभोजन त्याग व्रत में रात्रि में केवल अन्नादि स्थूल भोज्य पदार्थों का त्याग बताया गया है। इसमें जल, औषधि आदि का त्याग करना अनिवार्य नहीं है। अतः सद्गृहस्थ अपने आश्रित मनुष्य व तिर्यंचों को और आजीविका के न होने से दुखी अनाश्रित मनुष्यों को भी दिन में भोजन करावे । और जल, औषध, इलायची आदि को छोड़कर रात्रि में सब प्रकार के आहारादि का त्याग करे। रात्रि भोजन त्याग व्रत को पालन करने वाले श्रावक को दिन के अन्तिम मुहूर्त और प्रथम मुहूर्त में भोजन भी