याचना परीषह जय
जो कंठगत प्राण होने पर भी आहार, औषधि आदि की याचना नहीं करता याचना परीषहजय है जो बाह्य और अभ्यन्तर तप के अनुष्ठान करने में तत्पर है जिसका तप की भावना से शरीर अत्यन्त कृश हो गया जो प्राणों का वियोग होने पर भी आहार, वसति, औषधि आदि की दीन- वचन कहकर, मुख की म्लानता दिखाकर व संज्ञा आदि के द्वारा याचना नहीं करता तथा भिक्षा के समय भी जो बिजली की चमक के समान क्षण भर को दिखाई देता है ऐसे साधु के याचना परीषह जय होता है।