मोक्षमार्ग
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग है । औषधि के पूर्णफल की प्राप्ति के लिये जैसे उसका श्रद्धान, ज्ञान व सेवनरूप क्रिया आवश्यक है उसी प्रकार सम्यग्दर्शनादि तीनों के मेल से उनके फल की प्राप्ति होती है दर्शन और चारित्र का अभाव होने के कारण ज्ञान मात्र से ज्ञानपूर्वक क्रिया रूप अनुष्ठान के अभाव के कारण श्रद्धान मात्र ही तथा ज्ञान व श्रद्धान के अभाव के कारण क्रिया मात्र से मोक्ष नहीं होता, इसलिए तीनों मिलकर ही मोक्ष का साक्षात् मार्ग है मोक्ष मार्ग का प्ररूपण दो प्रकार से किया है निश्चय मोक्षमार्ग एवं व्यवहार मोक्षमार्ग । निश्चय से वीतराग सुख रूप परिणत जो निजशुद्धात्म तत्त्व है उसी के सम्यक श्रद्धान, ज्ञान व अनुचरण रूप अभेद रत्नत्रय का स्वरूप है यह निश्चय मोक्ष मार्ग है। व्यवहार से सर्वज्ञप्रणीत शुद्धात्मक तत्त्व को आदि लेकर छह द्रव्य पंचास्तिकाय, सात तत्त्व नव पदार्थों के विषय सम्यक श्रद्धान व ज्ञान करना तथा अहिंसादि व्रत व शील पालन करना ऐसा भेद रत्नत्रय का स्वरूप है यही व्यवहार मोक्षमार्ग है अथवा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र इन तीनों में भेद करना सो व्यवहार मोक्ष मार्ग है इन सब पदार्थो में ज्ञाता जीव एक ही है सो रत्नत्रय से आत्मा को अभिन्न देखना निश्चय मोक्ष मार्ग है। जिस प्रकार द्राक्षा, कपूर व खाण्ड आदि बहुत से द्रव्यों से बना हुआ भी पानक(शरबत) अभेद विवक्षा से एक कहा जाता है उसी प्रकार शुद्धात्मानुभूति लक्षण वाले निश्चय सम्यग्दर्शन ज्ञान व चारित्र इन तीनों के द्वारा परिणाम अनेक रूप वाला भी आत्मा अभेद विवक्षा से एक ही कहा जाता है ।व्यवहार मार्ग में प्रवेश किये बिना जीव निश्चय मार्ग को जानने में समर्थ नहीं हो सकता । इसलिए निश्चय मार्ग तो साध्यरूप है और व्यवहार मार्ग उसका साधन है निश्चय द्वारा अभिन्न साध्य साधन भाव से तथा व्यवहार द्वारा भिन्न साध्य साधन भाव से जो मोक्ष मार्ग है दो प्रकार से प्ररूपण किया गया है इसमें परस्पर विरोध नहीं है क्योंकि सुवर्ण और सुवर्ण पाषाणवत् निश्चय व व्यवहार को साध्य साधन पना है अर्थात् जैसे सुवर्ण पाषाण अग्नि के संयोग से शुद्ध सुवर्ण बन जाता है वैसे ही जीव व्यवहार मार्ग के संयोग से निश्चय मार्ग को प्राप्त हो जाता है।