मूल प्रायश्चित्त
पुनः दीक्षा देना उपस्थापना या मूल नामक प्रायश्चित है उद्गम आदि छ्यालीस दोषों से युक्त आहार, उपकरण आदि को जो साधु ग्रहण कर लेता है वह मूल (प्रायश्चित ) प्राप्त होता है। अपरिमित अपराध करने वाला जो साधु पार्श्वस्थ, अवसन्न, कुशील, स्वछन्द आदि होकर कुमार्ग में स्थित है उसे यह दिया जाता है।