मिथ्यादर्शन
जीवादि पदार्थों का श्रद्धान न करना मिथ्यादर्शन है अथवा मिथ्यात्व कर्म के उदय से जो जीवादि पदार्थों का अश्रद्धान रूप परिणाम होता है वह मिथ्यादर्शन है। मिथ्यादर्शन दो प्रकार का हैनैसर्गिक और परोपदेशपूर्वक । जो परोपदेश के बिना मिथ्यात्व कर्म के उदय से अश्रद्धान रूप भाव होता है वह नैसर्गिक या अनभिगृहीत मिथ्यादर्शन है तथा दूसरों का उपदेश सुनकर जीवादि के अस्तित्व में या उनके धर्मों में जो अश्रद्धा होती है वह परोपदेशपूर्वक या अभिगृहीत मिथ्यादर्शन है। अभिगृहीत मिथ्यादर्शन चार प्रकार का है क्रियावादी (180), अक्रियावादी (84), अज्ञानी (67) और वैनयिक ( 32 ) इस तरह अभिगृहीत मिथ्यात्व के 363 भेद प्रभेद है । मिथ्यादर्शन के पाँच भेद भी कहे गए हैं- एकान्त, विनय, विपरीत, संशय और अज्ञान ।