मल्लिनाथ
उन्नीसवें तीर्थंकर । ये इक्ष्वाकुवंशी राजा कुंभ की रानी प्रजावती के पुत्र थे। इनकी आयु पचपन हजार वर्ष और शरीर पच्चीस धनुष ऊँचा था। देह की कान्ति स्वर्ण के समान थी। अपने विवाह के लिए सजाए गये नगर को देखकर इन्हें अपने पूर्व भव का स्मरण हो गया और इन्होंने विरक्त होकर जिनदीक्षा ले ली । छः दिन की तपस्या के उपरांत इन्हें केवलज्ञान हुआ। इनके संघ में अट्ठाईस गणधर, चालीस हजार मुनिराज पचपन हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं। सम्मेदशिखर से इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया ।