मल दोष
जिस प्रकार शुद्ध भी स्वर्ण – चाँदी आदि मल के संसर्ग से मलिन हो जाते है । उसी प्रकार दर्शनमोह की सम्यक्त्व प्रकृति नामक कर्म के उदय से शुद्ध भी सम्यग्दर्शन मलिन हो जाता है शंका आदि दोष सम्यग्दर्शन को मलिन करते हैं यही मल-दोष कहलाता है।
जिस प्रकार शुद्ध भी स्वर्ण – चाँदी आदि मल के संसर्ग से मलिन हो जाते है । उसी प्रकार दर्शनमोह की सम्यक्त्व प्रकृति नामक कर्म के उदय से शुद्ध भी सम्यग्दर्शन मलिन हो जाता है शंका आदि दोष सम्यग्दर्शन को मलिन करते हैं यही मल-दोष कहलाता है।
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