ब्रह्मचर्याणुव्रत
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जो पाप के भय से न तो स्वयं पर स्त्री की आकांक्षा करता है और न दूसरों को प्रेरणा देता है वह पर स्त्री त्याग रूप स्वदार संतोष नाम का अणुव्रत है इसे ही ब्रह्मचर्याणुव्रत कहते हैं ।
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