पुलाक
निर्ग्रन्थ भावलिंगी वीतराग साधु के पाँच भेदों में से एक भेद पुलाक है। जिनका मन उत्तर गुणों के पालन की भावना से रहित हैं जो कहीं पर और कदाचित् व्रतों में भी परिपूर्णता को प्राप्त नहीं होते हैं, वे पुलाक कहे जाते हैं अथवा दूसरों के दबाववश पाँच मूलगुण (महाव्रत) और रात्रिभोजन त्यागव्रत में से किसी एक की विराधना ( प्रतिसेवना) करने वाले मुनि पुलाक कहलाते हैं। ये देव पर्याय में सौधर्म से सहस्रार स्वर्ग तक ही उत्पन्न होते हैं ये सभी तीर्थंकरों के समय में होते हैं इनके सामायिक छेदोपस्थापना से यह होता है तथा ग्यारह अंग दस पूर्व तप श्रुत ज्ञान या जघन्य आचार वस्तु मात्र श्रुत ज्ञान होता है तीन शुभ लेश्या होती है।