नोकर्म
औदारिक, वैक्रियक, आहारक और तैजस नाम कर्म के उदय से चार प्रकार के शरीर, वे नोकर्म शरीर है। (कार्मण वर्गणा को छोड़कर शेष 19 प्रकार की वर्गणाएँ नोकर्म वर्गणाएँ हैं। अर्थात् कुल 23 प्रकार की वर्गणाओं में से कार्मण भाषा, मनो तथा तैजस इन चार को छोड़कर शेष 19 वर्गणाएँ नोकर्म वर्गणाएँ हैं) एक तौ निषेध रूप और एक ईषत्, स्तोक रूप ऐसे नो शब्द के दो अर्थ हैं। सो यहाँ कार्मण की ज्यों ये चार शरीर आत्मा के गुणों को घातैं न ही वा गत्यादिक रूप पराधीन न करि सकें। तातैं कर्म तैं विपरीत लक्षण धरने करि इनकौं कर्म शरीर कहिए । अथवा कर्म शरीर के सहकारी हैं, तातैं ईषत् अकर्म शरीर कहिए अथवा कर्म शरीर के ये सहकारी हैं। तातैं ईषत् कर्म शरीर कहिए। ऐसे इनको नोकर्म शरीर कहैं। जैसे मन को नो इन्द्रिय कहिए हैं। कर्म के उदय से प्राप्त होने वाला औदारिक आदि शरीर जो जीव के सुख-दुःख में निमित्त बनता है वह नो– कर्म कहलाता है ।