निश्चयावलंबी साधु
जैसे शत्रु और मित्र वर्ग समान हैं, सुख–दुःख समान हैं, प्रशंसा – निन्दा के प्रति जिसको समता जिसे लोष्ट(ढेला) और स्वर्ण समान हैं, और जीवन-मरण के प्रति समता है, वह निश्चय से श्रमण है। काय व वचन के व्यापार से मुक्त, चतुर्विधआराधना में सदा रक्त, निर्ग्रन्थ और निर्मोह, ऐसे निश्चय साधु होते हैं। सुख-दुःख में जो समान हैं, ध्यान में लीन हैं, वे श्रमण होते हैं। शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के राग से मुक्त जो निज आत्मा को ही श्रद्धान रूप और ज्ञानरूप बना देता है, वह उपेक्षा रूप ही जिसकी आत्मा हो जाती है अर्थात् जो निश्चय और अभेद रत्नत्रय की साधना करता है, वह श्रेष्ठ मुनि निश्चयावलंबी माना जाता है।