धर्मपत्नि
अपनी जाति की जिस कन्या के साथ विवाह किया जाता है, वह धर्मपत्नि है । वह ही यज्ञ पूजा प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्यों में व प्रत्येक धर्म कार्यों में साथ रहती है, उस धर्मपत्नि से उत्पन्न पुत्र ही पिता के धर्म का अधिकारी होता है और गोत्र की रक्षा करने रूप कार्य में वह ही समस्त लोक का अविरोधी पुत्र है। अन्य जाति की विवाहित कन्या रूप पत्नि से उत्पन्न पुत्र को उपरोक्त कार्यों का अधिकार नहीं है।