जाति न्याय
साधर्म्य और वैधर्म्य जो प्रत्यवस्थान (दूषण) दिया जाता है, उसको जाति कहते हैं। एकान्तवादियों की भांति मिथ्या उत्तर देना जाति है। अर्थात् प्रमाण से उत्पन्न उपयन साध्य रूप धर्म में सद्भूत दोष का उठाना तो सम्भव नहीं है, ऐसा समझ कर असद्भूत ही दोष उठाते हुए मिथ्या उत्तर देना जाति है। वादी के द्वारा सम्यक हेतु अथवा हेत्वाभास के प्रयोग करने पर वादी के हेतु के सदोषता की बिना परीक्षा किए हेतु के समान मालूम होने वाला शीघ्रता से कुछ भी कह देना जाति है। जाति 24 प्रकार की हैं (नैयायिकों की अपेक्षा)। जैन नैयायिक भी जाति के 24 भेद ही नहीं मानते क्योंकि मिथ्या उत्तर अनन्त हो सकते हैं।