जन्म कल्याणक
तीर्थंकर के जन्म का उत्सव जन्म कल्याणक कहलाता है तीर्थंकर का जन्म होने पर देव भवनों व स्वर्ग में घंटा आदि स्वयमेव बजने लगते हैं और इन्द्रों के आसन कम्पायमान हो जाते हैं जिससे उन्हें तीर्थकर के जन्म का निश्चय हो जाता है। सभी इन्द्र व देव तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाने बडी धूम-धाम से पृथ्वी पर आते हैं अहमिन्द्र अपने-अपने स्थान पर ही सात कदम आगे आकर तीर्थंकर को परोक्ष नमस्कार करते हैं। दिक्कुमारी देवियाँ तीर्थंकर के जातकर्म करती हैं कुबेर आकर नगर की अद्भुत शोभा करता है इन्द्र की आज्ञा से इन्द्राणी (शची) प्रसूतिगृह में जाकर माता को मायामयी निद्रा में सुलाकर बालक तीर्थंकर को लेकर इन्द्र की गोद में देती है इन्द्र तीर्थंकर का सौन्दर्य देखने के एक हजार आँखें बनाकर भी तृप्त नहीं होता। ऐरावत हाथी पर बालक तीर्थंकर को लेकर इन्द्र सुमेरू पर्वत की ओर जाता है और वहाँ पहुँचकर पाण्डुक शिला पर तीर्थंकर का देवों द्वारा क्षीरसागर से लाए गए जल के एक हजार आठ कलशों द्वारा अभिषेक करता है। तदन्तर बालक तीर्थंकर को वस्त्राभूषण से अलंकृत कर नगर में देवों सहित महान् उत्सव के साथ प्रवेश करता है वह बालक के अंगूठे में अमृत भरकर ताण्डव नृत्य आदि अनेक आश्चर्यकारी लीलाएँ प्रगट कर देवलोक की ओर जाता है, यह जन्मकल्याणक की अद्भुत महिमा है।