चारित्रार्य
चारित्रार्य दो प्रकार के हैं अधिगत चारित्रार्य और अनधिगत चारित्रार्य जो बाह्य उपदेश के बिना आत्म-प्रसाद मात्र से चारित्रादि के उपशम या क्षय होने से चारित्र परिणाम को प्राप्त होते हैं ऐसे उपशात्त कषाय और क्षीण कषाय जीव अधिगत चारित्रार्य कहलाते हैं तथा अंतरंग चारित्र मोह के क्षयोपशम का सद्भाव होने पर बाह्य-उपदेश के निमित्त से संयम भाव को प्राप्त होने वाले अनधिगत चारित्रार्य कहलाते हैं ।