चारित्राराधना
सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र व सम्यक्तप इन चारों का यथायोग्य रीति से उद्योतन करना, उनमें परिणति करना, इनको दृढ़तापूर्वक धारण करना, उनके मंद पड़ जाने पर पुनः जाग्रत करना, उनका आमरण पालन करना सो (निश्चय ) आराधना कहलाती है। दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इनको चार आराधना कहा गया है। अथवा जिनागम में संक्षेप से आराधना के दो भेद कहे हैं- एक सम्यक्त्वाराधना दूसरा चारित्राराधना ।